Saturday 11 July 2015

तुझे कद्र ना समझ आई


जो सच पर रही डॅट्कर हमेशा
आज कसमे झूठी उसी ने है खाई

जिसके लिए अपनो से और दुनिया वालो से लड़ी
आज उसी की नज़रें क्यूँ झुकाई?

प्यार दिया जिसने जहाँ मे सबसे ज्यादा
उसके खिलाफ क्यूँ दी तूने गवाही?

मासूमियत से भरा बनाया था तुझे
फिर कहाँ से ये हैवानियत है आई?

आज पूंछ रही है मेरे दरबार पे आकर
कि ये कैसी किस्मत है मैने पाई

बेटा मैने तो चून चून कर हीरे दिए थे तुझे
पर तुझे ही कद्र ना समझ आई

जिसकी चमक को संझोकर रखना था तुझे
उस हीरे के ज़हेर की की तूने सिचाई

मत पूछ बेटा कैसी किस्मत है पाई
जब की तूने खुद अपनी कब्र की खुदाई!
-हिमांशी